इतिहास की वो स्याह तारीख

एक तारीख वक़्त की किताब में स्याह हो गई... शायद ऐसा न होता... अगर इतिहास ने सियासत के गलियारे में बैठक नहीं की होती... अगर धर्म ने इंसानों का बंटवारा नहीं किया होता...


अदालत ने माना था कि इतिहास में एक ग़लती हुई थी... लेकिन उस ग़लती को साढ़े तीन सौ साल बाद दुरुस्त करना नामुमकिन सा है... फिर भी धर्म के जुनून ने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि इंसान उस ग़लती को सुधारने निकल गया...


तारीख 6 दिसम्बर 1992

जुनून... जंग बन गई... और एक बार फिर उसी जगह पर एक और ऐसी भयानक भूल हुई... ऐसी ग़लती हुई... जिसने इतिहास में इस तारीख का रंग काला कर दिया...

अंग्रेज़ों के वक़्त में ही इस जगह को लेकर विवाद पनपा... जब भी धर्म की धर्म से लड़ाई हुई थी... एक दंगा हुआ था... साल 1853...

1859 में ब्रितानी हुक्मरानों ने यहां बाड़ लगाया और मुसलमान को भीतर इबादत करने की मंज़ूरी मिली और हिन्दूओं को बाहर रहकर पूजा करनी थी... उस वक़्त लड़ाई थी एक चबूतरे की... जिस पर हिंदू, देवताओं की मूर्तियां रखकर पूजा करना चाहते थे...

29 दिसंबर 1949, को भारतीय शासन काल में कथित मस्जिद को कुर्क कर वहां ताला लगा दिया गया... उसके बाद से एक के बाद अदालत में मुकदमे दाखिल हुए... अब तक 5 मुकदमे दाखिल हो चुके हैं... हालांकि शुरुआत में लड़ाई थी राम चबूतरे को लेकर... लेकिन 1984 में आरएसस और वीएचपी ने विवादित जगह, जिसे राम जन्म भूमि कहा जाता है... वहां का ताला खुलवाने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया... और ये मुद्दा राष्ट्रीय स्तर का बन गया...

1986 में अदालत के एक फैसले में राम जन्म भूमि का ताला खोलने का आदेश पारित हुआ... ये मुसलमान वर्ग को मंज़ूर नहीं था.. लिहाज़ा... इसी साल बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन हुआ... यहां से एक जंग की शुरूआत हो चुकी थी...

लेकिन 1989 में इस आग में घी पड़ी... ये घी थी सियासत की... राजीव गांधी ने आम चुनावों के लिए अपना प्रचार अभियान शुरू किया फ़ैज़ाबाद से... और नारा दिया राम राज्य लाने का... भगवा ब्रिगेड के लिए सियासत में राम मंदिर मुद्दा इस्तेमाल करने का ये सबसे सुनहरा मौका था... और वीएचपी ने चुनाव से ठीक पहले विवादित जगह से दो सौ फुट की दूरी पर राम मंदिर का शिलान्यास कर दिया...

1990 में श्रीराम सेवा समिति, विश्व हिंदू परिषद, और राम जन्मभूमि न्यास राम रथ यात्रा ने आयोजित करने की योजना बनाई और 4 अप्रैल 1991 को राजधानी दिल्ली में एक रैली की गई... जिसमें लाखों समर्थकों ने हिस्सा लिया... हिंदू नेताओं के आक्रामक भाषण ने भगवान श्री राम को राजनीति में खींच लिया... भारतीय जनता पार्टी के लिए श्री राम का नाम सबसे बड़ा हथियार था... दिल्ली में आयोजित इस रैली में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने मंदिर वहीं बानएंगे का नारा दिया... और यहीं से पड़ गई थी 6 दिसम्बर 1992 की नींव...

दिसम्बर 1992... पूरे देश में एक लहर दौड़ पड़ी थी... धर्म ने हिंदूओं को खींचना शुरू कर दिया था... लाखों की संख्या में पूरे देश से कारसेवक अयोध्या पहुंच गए... विश्व हिंदू परिषद, भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना की दलील थी... कि ये एक आंदोलन है.... जो शांतिपूर्ण रहेगा.... साधुओं की रैली है.... जिसमें आंदोलन की रणनीति बनेगी... लेकिन जो हुआ उसे दुनिया ने देखा.... विवादित ढाचा गिरा दिया गया...

और अब क़ानूनी लड़ाई की तस्वीर भी बदल चुकी है... अब लड़ाई सिर्फ राम चबूतरे के लिए नहीं है... अब अदालत को निर्णय लेना है कि उस जगह पर इतिहास में मंदिर था या मस्जिद... यानी मसला अब ज़मीन का है....

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